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ऑनलाइन गेमिंग पर जीएसटी लगाने का सरकार का फैसला प्रत्याशित है, लेकिन 28 फीसदी की दर अप्रत्याशित है। काफी दिनों से यह प्रयास हो रहा था कि ऑनलाइन गेमिंग के पूरे ढांचे को नियंत्रित किया जाए। ऐसा इसलिए…
Pankaj Tomarपवन दुग्गल, साइबर मामलों के कानूनी विशेषज्ञThu, 13 Jul 2023 11:02 PMऐप पर पढ़ें
ऑनलाइन गेमिंग पर जीएसटी लगाने का सरकार का फैसला प्रत्याशित है, लेकिन 28 फीसदी की दर अप्रत्याशित है। काफी दिनों से यह प्रयास हो रहा था कि ऑनलाइन गेमिंग के पूरे ढांचे को नियंत्रित किया जाए। ऐसा इसलिए, क्योंकि इसके दुरुपयोग की आवाजें मुखरता से आ रही थीं। इसी कारण, विगत 6 अप्रैल को सूचना-प्रौद्योगिकी नियम, 2021 में संशोधन किया गया, जिसके तहत ऑनलाइन गेमिंग की सुविधा देने वाले सर्विस प्रोवाइडरों को मध्यवर्ती संस्थान बना दिया गया और उनके लिए कई तरह के प्रावधान तय किए गए। यह सरकार का पहला कदम था। अब इसे जीएसटी के दायरे में लाकर उसने दूसरा कदम बढ़ाया है। चूंकि ऑनलाइन गेम से लोग बेहिसाब पैसे कमाने लगे थे और देश खाली हाथ था, इसलिए इस पर जीएसटी लगाने का निर्णय लिया गया है।
सवाल है कि इस फैसले से तकरीबन 1.5 अरब डॉलर का यह कारोबार कितना प्रभावित होगा? यह उम्मीद तो की जा रही थी कि ऑनलाइन गेमिंग को जीएसटी के दायरे में लाया जाएगा, लेकिन इतना ज्यादा टैक्स क्या यह क्षेत्र आसानी से स्वीकार कर लेगा? इसके क्या नुकसान हो सकते हैं? यह बात तय है कि जिस गति से यह कारोबार बढ़ रहा है, उस पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। आंकड़ों की मानें, तो अगर इसके साथ कोई छेड़छाड़ न होती, तो 2027 तक यह उद्योग 25,000 करोड़ रुपये तक की कमाई करता। कहा यह भी जा रहा है कि जिस 2.6 अरब डॉलर के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) का सपना यह उद्योग देख रहा था, जीएसटी लगने के बाद उसमें कमी आ सकती है। संकेत साफ है, सरकार का यह फैसला ऑनलाइन गेमिंग की तरफ से लोगों को निरुत्साहित कर सकता है। एक नुकसान और भी है। अब टैक्स से बचने के लिए चोर दरवाजे ढूंढे़ जा सकते हैं। इससे ऐसे कई ऑनलाइन प्लेटफॉर्म की आवक बढ़ सकती है, जो उपभोक्ताओं को गैर-कानूनी ऑनलाइन गेम खेलने की ओर प्रोत्साहित करेंगे, जिनसे उनकी निजता, उनके डाटा आदि में सेंध लग सकती है।
हालांकि, सरकार भी संतुलन साधने के प्रयास कर रही है। देखा जाए, तो अब तक ऑनलाइन गेमिंग का ‘मधुमास’ चल रहा था। इस पर कोई नियम-कानून लागू नहीं था। लोग पैसे कमा रहे थे, बल्कि कई सर्विस प्रोवाइडर तो गलत धंधा भी कर रहे थे। मगर अब इसका नियमन सुनिश्चित किया जा रहा है। अभी तो इस कवायद की आलोचना हो रही है, लेकिन कुछ समय बाद हम यही महसूस करेंगे कि इसके ‘इकोसिस्टम’ का प्रबंधन उपभोक्ताओं के हित में है। अब यह क्षेत्र कहीं अधिक जवाबदेह बन सकेगा। हां, जीएसटी को कम करके इसे फिलहाल पंख फैलाने का मौका मिलना चाहिए, लेकिन जीएसटी के दायरे में ही न लाए जाने की मांग बेतुकी है।
अन्य क्षेत्रों की तुलना में ऑनलाइन गेमिंग अब भी ‘ग्रे जोन’ है। यहां आर्थिक हेरफेर, दुष्प्रचार, फर्जी तरीकों का इस्तेमाल आदि की गुंजाइश काफी ज्यादा है। गेमिंग की आड़ में ‘गैंबलिंग’ (जुआ खेलना) तो काफी समय से हो रहा है। मगर जब आईटी नियम (संशोधित), 2023 लागू किए गए, तब उसमें यह तय किया गया कि अगर कोई कंपनी ऑनलाइन गेमिंग की सेवा दे रही है, तो उसे नियमों के दायरे में आना ही होगा। सरकार लगातार इसे कसने के प्रयास कर रही है। उसकी कोशिश है कि असल खिलाड़ी ही मैदान में रहें, जो ठगने की कोशिश करते हैं या खेल के नाम पर जुआ परोसते हैं, उनके ऊपर लगाम लगे। जीएसटी लगाने का फैसला इसी सोच के तहत लिया गया है।
ऑनलाइन गैंबलिंग बेशक कई ‘कर सुरक्षित’ देशों में मान्य है, लेकिन ज्यादातर राष्ट्र इसके पक्षधर नहीं हैं। वे सभी देश अपनी-अपनी तरह से इसे नियमन के दायरे में लाना चाहते हैं। इसीलिए दुनिया भर में ऑनलाइन गेमिंग को नियंत्रित करने के प्रयास हो रहे हैं। हालांकि, वहां भी दोनों तरह के मत हैं। एक वर्ग चाहता है कि इस क्षेत्र को अभी और विस्तार का मौका मिलना चाहिए, और बाद में इस पर कानूनी बंदिश लगाई जाए। जबकि, दूसरा वर्ग, शुरू से ही इसे कानून के अधीन लाने की वकालत करता रहा है। यह भी एक कारण है कि अभी तक ऑनलाइन गेमिंग या गैंबलिंग को लेकर कोई अंतरराष्ट्रीय कानून नहीं बन सका है, और न ही ऐसी कोई अंतरराष्ट्रीय संधि अस्तित्व में आई है, जो इस पर टिप्पणी करती हो। यहां तक कि साइबर अपराध से निपटने वाली अपनी तरह की पहली अंतरराष्ट्रीय संधि ‘बुडापेस्ट कन्वेंशन’ भी इस पर बिल्कुल मौन है।
तर्क यह दिया जा रहा है कि सरकार का फैसला एक संकेत है कि इंटरनेट की दुनिया में मुफ्त का आनंद अब दुर्लभ है। मैं ऐसा नहीं मानता। हमें इस ‘मुफ्त’ की सोच से ऊपर उठना होगा। कोई भी कंपनी किसी क्षेत्र में लाभ कमाने की मंशा के साथ ही पैसा लगाती है। ऐसी किसी वेबसाइट या मंच पर, जो मुफ्त दिख रहा हो, आप जैसे ही अपना रजिस्ट्रेशन कराते हैं, बतौर उपभोक्ता एक उत्पाद बन जाते हैं। उपभोक्ताओं को तार्किक होना चाहिए। आखिर कोई कंपनी उनको मुफ्त में सेवा क्यों देगी या उसे क्यों देनी चाहिए? मुफ्त के चक्कर में लोग क्या सेवाओं की गुणवत्ता, डाटा- सुरक्षा, निजता की रक्षा आदि से समझौते तो नहीं कर रहे हैं? बेशक, ऑनलाइन गेमिंग पर जीएसटी लगाने के फैसले से ये तमाम सेवाएं महंगी हो सकती हैं और अंतत: उपभोक्ताओं की जेबों पर ही इसका बोझ पड़ेगा, लेकिन हमें यह भी समझना चाहिए कि बिना टैक्स लिए सरकार शासन-संबंधी काम आसानी से कैसे कर सकेगी? लोगों को कर चुकाने की आदत विकसित करनी चाहिए।
ऑनलाइन गेमिंग से हमें फायदा भी है और नुकसान भी। यह कुछ-कुछ उस आधे भरे ग्लास जैसा है, जिसके बारे में खुद हमें यह तय करना है कि वह आधा भरा है या खाली? अगर आम लोग इससे लाभान्वित हो रहे हैं, तो उनके हितों की सुरक्षा सुनिश्चित करना भी सरकार का दायित्व है। बेशक, 28 फीसदी जीएसटी के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ने की तैयारी ऑनलाइन गेमिंग सेर्विस प्रोवाइडर करने लगे हैं, लेकिन ऑनलाइन गेमिंग को काला धन या भ्रष्टाचार का कारोबार बनने से रोकना ही होगा। अब देखना यह है कि सरकार कैसे अपने मकसद में कामयाब हो पाती है?
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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