मणिपुर में फिर हिंसा दो की मौत, 45 घायल:दो जगह फायरिंग की घटना, पैलेल में सड़क पर भीड़ मौजूद, तनावइंफाल8 मिनट पहले
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पैलेल में भीड़ को हटाने के लिए असम राइफल्स के जवानों ने आंसू गैस के गोले दागे।
मणिपुर के तेंगनौपाल जिले के पैलेल में फायरिंग की दो अलग-अलग घटनाओं में गुरुवार को दो लोगों की मौत हो गई। वहीं 45 अन्य घायल हो गए। घायलों में चार को गोली लगी है।
पुलिस ने बताया कि पैलेल में सुबह के करीब छह बजे अज्ञात पुरुषों के दो समूहों के बीच गोलीबारी हुई, जिसमें एक व्यक्ति घायल हो गया। उसे तुरंत ककचिंग के जीवन अस्पताल में ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। वहीं गोली लगने से घायल एक और व्यक्ति को इंफाल क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान संस्थान (रिम्स) ले जाया गया। फिलहाल उसकी हालत गंभीर है।
पैलेल में स्थिति अभी तनावपूर्ण बनी हुई है। गोलीबारी रुकी हुई है।
पैलेल में आंसू गैल के गोले दागे, 50 महिलाएं घायल
गोलीबारी की घटना के बारे में सुनकर थौबल और काकचिन जिले से बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ पैलेल पहुंची, लेकिन असम राइफल्स के जवानों ने उन्हें रोक लिया। यहां भी दो समूहों के बीच इस झड़प में एक 48 वर्षीय व्यक्ति की गोली लगने से मौत हो गई।
स्थिति को शांत करने के लिए असम राइफल्स के जवानों ने आंसू गैस के गोले दागे, जिसमें करीब 50 महिलाएं घायल हुई। घायलों में असम राइफल्स के जवान भी शामिल हैं। वहीं दूसरी तरफ भीड़ को नियंत्रित करने के लिए इंफाल से पैलेल की तरफ जा रहे RAF कर्मियों के दल को स्थानीय लोगों ने थौबल में रोक दिया। फिलहाल स्थिति तनावपूर्ण है। गोलीबारी भी रुकी हुई है।
पांच जिलों में कर्फ्यू जारी
बुधवार को हजारों प्रदर्शनकारी बिष्णुपुर जिले के फौगाकचाओ इखाई में इकट्ठा हुए थे। वे सभी तोरबुंग में अपने सूने पड़े घरों तक पहुंचने के लिए सेना के बैरिकेड्स को तोड़ने की कोशिश कर रहे थे। इसके बाद एहतियात के तौर पर मणिपुर के सभी पांच घाटी जिलों में पूर्ण कर्फ्यू लगा दिया गया था।
3 मई को मणिपुर में जातीय हिंसा भड़कने के बाद से राज्य में अब तक 160 से अधिक लोग मारे गए हैं। मणिपुर की आबादी में मैतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इम्फाल घाटी में रहते हैं, जबकि नागा और कुकी सहित आदिवासी 40 प्रतिशत हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिले में रहते हैं।
3 मई से जारी हिंसा में 160 से ज्यादा मौतें
राज्य में कुकी और मैतेई समुदाय के बीच 3 मई से जारी हिंसा में अब तक 160 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र ने बताया था कि मणिपुर में 6 हजार 523 FIR दर्ज की गई हैं। इनमें से 11 केस महिलाओं और बच्चों की हिंसा से जुड़े हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 7 अगस्त को कहा था कि मणिपुर हिंसा से जुड़े मामलों की जांच 42 स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीमें (SIT) करेंगी।
4 पॉइंट्स में जानिए क्या है मणिपुर हिंसा की वजह…
मणिपुर की आबादी करीब 38 लाख है। यहां तीन प्रमुख समुदाय हैं- मैतेई, नगा और कुकी। मैतई ज्यादातर हिंदू हैं। नगा-कुकी ईसाई धर्म को मानते हैं। ST वर्ग में आते हैं। इनकी आबादी करीब 50% है। राज्य के करीब 10% इलाके में फैली इंफाल घाटी मैतेई समुदाय बहुल ही है। नगा-कुकी की आबादी करीब 34 प्रतिशत है। ये लोग राज्य के करीब 90% इलाके में रहते हैं।
कैसे शुरू हुआ विवाद: मैतेई समुदाय की मांग है कि उन्हें भी जनजाति का दर्जा दिया जाए। समुदाय ने इसके लिए मणिपुर हाईकोर्ट में याचिका लगाई। समुदाय की दलील थी कि 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ था। उससे पहले उन्हें जनजाति का ही दर्जा मिला हुआ था। इसके बाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से सिफारिश की कि मैतेई को अनुसूचित जनजाति (ST) में शामिल किया जाए।
मैतेई का तर्क क्या है: मैतेई जनजाति वाले मानते हैं कि सालों पहले उनके राजाओं ने म्यांमार से कुकी काे युद्ध लड़ने के लिए बुलाया था। उसके बाद ये स्थायी निवासी हो गए। इन लोगों ने रोजगार के लिए जंगल काटे और अफीम की खेती करने लगे। इससे मणिपुर ड्रग तस्करी का ट्राएंगल बन गया है। यह सब खुलेआम हो रहा है। इन्होंने नागा लोगों से लड़ने के लिए आर्म्स ग्रुप बनाया।
नगा-कुकी विरोध में क्यों हैं: बाकी दोनों जनजाति मैतेई समुदाय को आरक्षण देने के विरोध में हैं। इनका कहना है कि राज्य की 60 में से 40 विधानसभा सीट पहले से मैतेई बहुल इंफाल घाटी में हैं। ऐसे में ST वर्ग में मैतेई को आरक्षण मिलने से उनके अधिकारों का बंटवारा होगा।
सियासी समीकरण क्या हैं: मणिपुर के 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई और 20 विधायक नगा-कुकी जनजाति से हैं। अब तक 12 CM में से दो ही जनजाति से रहे हैं।
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मणिपुर में हिंसा शुरू हुए ढाई महीने से ज्यादा हो चुके हैं। जल चुके 120 से ज्यादा गांव, 3,500 घर, 220 चर्च और 15 मंदिर हिंसा की निशानी के तौर पर खड़े हैं। इस तबाही में खाली स्कूल और खेत भी जुड़ चुके हैं। अब स्कूलों के खुलने का वक्त है और खेतों में बुआई का। पूरी खबर पढ़ें…
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