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Hindi News AstrologyKnow rakshabandhan rakhi katha link with Goddess lakshmiमां लक्ष्मी से भी है रक्षा बंधन का संबंध
rakshabandhan rakhi ऐसी मान्यता है कि तभी से रक्षाबंधन का पावन पर्व आरंभ हुआ और लोग जीवन में विजय श्री की प्राप्ति के लिए ब्राह्मण से इस दिन रक्षाबंधन का कार्य करते हैं। इसके बाद से राखी बांधने की परं
Anuradha Pandeyज्योतिर्विद पं दिवाकर त्रिपाठी,नई दिल्लीMon, 28 Aug 2023 01:00 PMऐप पर पढ़ें
रक्षा के लिए बांधा जाने वाला पवित्र धागा रक्षाबंधन है। इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती हैं और भाई बहनों को उनकी रक्षा का वचन देते हैं। इस साल 30 और 31 अगस्त दोनों दिन रक्षा बंधन का पर्व मनाया जा रहा है। 30 अगस्त को पूर्णिमा के शुरु होने से भद्रा भी शुरू हो रही है। इसलिए 31 अगस्त को भी रक्षा बंधन का पर्व मनाया जाएगा। रक्षा बंधन का संबंध माता लक्ष्मी से जुड़ी इस कथा से भी है। आइए जानते हैं कि मां लक्ष्मी और रक्षा बंधन से जुड़ी कथाएं-प्राचीन काल में राजा बलि अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे। उसे समय भगवान विष्णु ने राजा बलि को छलने कछुआ परीक्षा लेने के उद्देश्य से वामन अवतार लिया और राजा बलि से तीन पग धरती दान में मांगी। उस समय राजा बलि ने सोचा यह ब्राह्मण तीन पग में भला कितनी जमीन नापेगा और उन्होंने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। देखते ही देखते वामन रूप धारण किए हुए भगवान विष्णु का आकार बढ़ने लगा और उन्होंने दो पद में सब कुछ नाप लिया। तीसरी पग में राजा बलि ने स्वयं को सौंप दिया और इससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने राजा बलि को पाताल लोक दे दिया और अपने लिए वरदान मांगने को कहा।
उस समय राजा बलि में भगवान विष्णु से एक वचन मांगा कि वह जब भी देखें तो भगवान विष्णु को ही देखें । भगवान विष्णु ने तथास्तु कह कर वचन को पूर्ण कर दिया। अपने वचन के अनुसार भगवान पाताल लोक में रहने लगे क्योंकि नियमित बाली के सामने रहने का वचन दे दिया था। इस बात पर माता लक्ष्मी को अपने स्वामी श्री विष्णु जी की चिंता होने लगी। तब माता लक्ष्मी जी को देवर्षि नारद ने एक सुझाव दिया। जिसमें उन्होंने कहा कि माता लक्ष्मी राजा बलि को अपना भाई बना लें और अपने स्वामी को वापस लाएं। माता लक्ष्मी स्त्री का भेष धारण कर रोती हुई पाताल लोक पहुंच गईं। दुख का कारण राजा बलि ने पूछा तो लक्ष्मी जी ने कहा मेरा कोई भाई नहीं है, इसीलिए मैं अत्यंत दुखी हूं। तब बाली ने कहा कि तुम मेरी धर्म बहन बन जाओ। इसके बाद लक्ष्मी जी ने राजा बलि को राखी बांधकर अपने वचन में भगवान विष्णु को वापस मांग लिया। ऐसी मान्यता है कि इस समय से रक्षाबंधन का त्योहार चलन में आया।
एक अन्य कथा के अनुसार जब भगवान श्री कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया तब उनकी कनिष्ठा उंगली कट गई। जिससे भगवान श्री कृष्ण की उंगली से रक्त निकलने लगी उसे समय द्रौपदी ने अपने साड़ी को चढ़कर द्रौपदी ने भगवान श्री कृष्ण के उंगली पर बांध दिया। इसके बाद से ही श्रीकृष्ण ने द्रोपति को अपनी बहन के रूप में स्वीकार किया और हर संकट से उनकी रक्षा करने का वचन दिया इस वचन के अनुसार भरी सभा से भगवान श्री कृष्णा में द्रोपती को दुर्योधन के द्वारा चीर हरण से बचाया था। तभी से यह पौराणिक या परंपरा चली आ रही है की बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधेंगी और बहन की रक्षा के लिए भाई संकल्प लेता है।
तीसरी कथा के अनुसार जब इंद्र दैत्य से पराजित होकर परेशान हो गए । तब देव गुरु बृहस्पति के पास पहुंचकर निदान पूछा । देवगुरु बृहस्पति ने कहा की श्रावण पूर्णिमा के दिन सुबह
'येन बद्धो बलिर्राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वामभिवध्नामि रक्षे मा चल मा चलः।'
इस मंत्र का श्रावणी पूर्णिमा के अवसर पर श्रेष्ठ ब्राह्मणों से स्वस्तिवाचन कराकर रक्षा का तंतु इंद्र की कलाई पर बांधकर युद्ध में लड़ने के लिए भेज दिया गया। रक्षाबंधन के प्रभाव से दैत्य भाग खड़े हुए , इंद्र की विजय हुई ।ऐसी मान्यता है कि तभी से रक्षाबंधन का पावन पर्व आरंभ हुआ और लोग जीवन में विजय श्री की प्राप्ति के लिए ब्राह्मण से इस दिन रक्षाबंधन का कार्य करते हैं। इसके बाद से बहनों द्वारा भाई को राखी बांधने की परंपरा शुरू हुई।ब्राह्मणों द्वारा अपने यजमानों को राखी बांधकर मंगलकामना की जाती है।इस दिन वेदपाठी ब्राह्मण यजुर्वेद का पाठ का आरंभ भी करते हैं। इस दिन शिक्षा का आरंभ करना शुभ माना जाता है।
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